कभी हम भी आए थे इस जगह ऐसे ही, जैसे आज ये युवा आए हैं। और बना था एक माहौल —
सब कुछ साझा करने का, जो अंदर था, जो बाहर था। आज फिर हमने देखा कि हम कहानियों की दुनिया में जीते हैं।
कुछ भी हुआ, तो बना डाला एक कहानी-संग्रह, जिसमें माँ-बाप, रिश्तेदार, दोस्त, भाई, बहन —
सब किरदार होते हैं। और इस कहानी के रचयिता हम ही होते हैं।
आज फिर हमने जाना कि इन कहानियों का जीवन की घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। सब हमारी ही कल्पना है, और यही है हमारे दुःख और अव्यवस्था का कारण।
आज हमने एक और शस्त्र फिर से पकड़ा — रैकेट नहीं, रैकेट लॉन्चर, जो हम ख़ुद ही हैं। आज हम फिर एक ऐसे स्पेस में पहुँचे जहाँ हम ख़ुद — ख़ुद से मिले, जो कहीं खो गए थे।
आज हम फिर ट्रांसफ़ार्म हुए। अब हम लेखक तो हैं, पर हमारी कहानियाँ पॉसिबिलिटी की हैं, क्षमा की हैं, नई संभावनाओं की हैं।
अब हम रैकेट तो चलाएँगे, पर कमिटमेंट की रेस्पॉन्सिबिलिटी के साथ। क्योंकि आज हमें शंकर मिले हैं, जिन्होंने दिखाया — तांडव इंटीग्रिटी का, एम्प्टी और मीनिंगलेस दुनिया में अनंत पॉसिबिलिटी के साथ।
मैं पानी हूँ, पाँच तत्वों में एक कहानी हूँ। मैं बादलों में, मैं नदियों में, मैं धरती के नीचे छुपा पानी हूँ।
मैं ही बहता हूँ आप की नस-नस में, शरीर में 70% तक बसता हूँ। पृथ्वी की गोद में भी 71% बनके चमकता हूँ।
मैं ज़हर भी बनता हूँ, अगर तुम मुझे गंदा कर दो। मैं अमृत भी बनता हूँ, अगर तुम मुझे समझ कर बरतो।
मैं सुनता हूँ, मैं समझता हूँ, मैं सिर्फ़ बहता नहीं—कहता भी हूँ। मैं सेहत लाता हूँ… पर बीमारियाँ भी साथ में लाता हूँ—
हैजा, टाइफाइड, दस्त, हेपेटाइटिस, कैंसर तक को न्यौता दे जाता हूँ। क्यों? क्योंकि तुमने मुझे जाने बिना अपनाया!
तय तुम करोगे— मैं जीवन बनूँ… या विनाश? मैं दोस्त बनूँ… या बीमारी की तलाश?
जो मेरी कद्र करता है, मैं उसे तंदुरुस्ती देता हूँ। जो मुझे नजरअंदाज़ करता है, मैं उसकी ज़िंदगी से खेल जाता हूँ।
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“जल है तो कल है — लेकिन साफ़ जल है तो स्वस्थ कल है।”
हे कार्यकर्ता तुम ज्ञान गुन सागर, तुमरे काज से तिहुँ लोक उजागर। नेता के तुम सन्देश वाहक, जनता का कोई तुम पर है हक़। तुम हो वीर बिक्रम बजरंगी, सुमति निवार कुमति के संगी। विद्यावान गुनी अति चातुर, नेता काज करिबे को आतुर।
नेता चरित्र सुनिबे को रसिया, MLA सांसद मिनिस्टर मनबसिया। वोट मांग तुम इलेक्शन जितवा, बदले में तुम कछु नहीं पावा। चाटुकार आगे निकल जावा, सच्चा कार्यकर्त्ता वही रह जावा। भीम रूप धरि विपक्ष सँहारे, नेता जी के काज सवाँरे।
लाय सजीवन पार्टी बचाये, नेताजी हरषि उर लाए। नेता कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई। तुम उपकार व्यपारियन कीन्हा, नेता मिलाय राज पद दीन्हा। तुम्हरो मंत्र कॉरपोरेट माना, साम्राज्य बनाया सब जग जाना।
नेता राज छुपावन माहिर, कबहुँ न कियो किसी पर जाहिर। दुर्गम काज नेतन के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते। नेता दुआरे तुम रखवारे, होत ना आज्ञा बिनु पैसारे। सब नेता सुख लहैं तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहु को डरना।
आपन तेज सम्हारो आपै, राजनीती हाँक तै कापै। विपक्ष-पक्ष निकट नहि आवै, नेता संग जब तुम हो जावे। नासै रोग हरे सब नेतन पीरा, जपत निरंतर तुम हनुमत बीरा। संकट तै नेतन को तुमहि छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।
फिर भी ऊपर नेता राजा, तिनके काज सकल तुम साजा। और मनोरथ जो नेता लावै, सोई अमित जीवन फल पावै। चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा। जनता के भी तुम रखवारे, नेता संग तुम काज सवारे।
लोक रसायन तुम्हरे पासा, फिर भी नेतन के तुम दासा। तुम्हरे काम जनता को भावे, फिर भी नेता तुम्हे दूर भगावे। अंतकाल पार्टी को याद आती, तुम्हारी कृपा से चुनाव जीत जाती। संकट कटै मिटै सब नेतन की पीरा, जो सुमिरै तुमरा नाम बलबीरा।
जामवंत जब कथा सुनाई, तब हनुमंत जागे शक्ति आयी। तुम भी हो हनुमंत सरीके, जागो अब कहा पड़े हो नेतन की पी के। जनता की तो तुम ताकत हो, तुम नेता पीछे भागत हो। जनता से संवाद तुम्हारा, फिर भी नेता तुम्हे दुत्कारा।
लोकतंत्र के तुम रखवारे, जनता संग मिलजाओ प्यारे। कूटनीति तुम भी अपनाओ, आओ अब एक KOOTWORLD बनाओ। तुम जनता के मन को भावे, फिर नेता तुम्हारे पीछे आवे। अपनी छवी बिखेरो भारी, तुम हो भविष्य के नेता भावी।
दोहा सब के तुम संकट हरो, अब कार्यकर्त्ता से आगे बड़ो। जनता तुम्हारे साथ है, तुम अब खुद नेता बनो।
किसी भी पार्टी के कार्यकर्त्ता को यह लगता है की पार्टी कार्यकर्ताओं का शोषण करती है और काम निकलने के बाद उनका ध्यान नहीं रखती है, वो कार्यकर्त्ता इस चालीसे को पढ़कर हमसे संपर्क कर सकते है। और अपने स्वाभिमान की रक्षा कैसे करनी है फ्री में जान सकते है। www.yatishjain.com
कहाँ है स्वतंत्र हम आज रो रही है भारत माता, अपने ही लोगों का खुले आम क़त्ल हो जाता। हिंदू सनातन कहते हो कहाँ के तुम हिंदू हो, जो हो रहा अपनों के साथ उसके केंद्र बिंदु हो ।
सबका खून खौलता है, तुम्हारा पानी हो जाता है । तुम्हारे सामने तुम्हारे भाई का, सीना छलनी हो जाता है।
आकर मोहल्ले में तुम्हारे, कोई अधिकार छीनता है। तुममें ही है ग़द्दार, आसानी से बीनता है ।
क्या करोगे झंडा उठाके, डंडा तुममें पड़ चुका है। अयोध्या भी चली गई, अब क्या तुम्हारे पास बचा है ।
कहाँ हो स्वतंत्र तुम, तुमसे वोट दिया नहीं जाता है । इसी लिये बंदर आके, तुम्हारी रोटी खाता है ।
स्वतंत्रता स्वतंत्रता करके तुम, अपने नक़्शे पर शरणार्थी बन जाओगे। अगर आज तुम सब, वोट देने की क़सम नहीं खाओगे।
आज़ादी का जश्न तभी सफल हो पाएगा, 100% वोट देकर लोकतंत्र जब आएगा।
वसुधैव कुटुंबकम तुम कहते हो और किस कुटुंब में रहते हो, अपने घर में साप पाल के दूध पिलाते रहते हो। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई तुम तो एक मानते हो, हिंदू कितना पिसता है पड़ोस के देश में क्या तुम जानते हो ।
तुमने सबको मान दिया अपने घर स्थान दिया, पर पड़ोसियों ने तुम्हारे भाइयों के साथ क्या किया। उनका खून खौलता है तुम्हारा पानी हो जाता है, जब कभी बंगला देश पाकिस्तान में अपनों घर जलाया जाता है।
उनकी राजनीति में सिर्फ़ उनकी जात को स्थान है, हमारी राजनीतिक में हम ही उनके दलाल है। उनके ऊपर यहां कुछ हो तो राहुल अखिलेश चिल्लाते है, और वहाँ कुछ हो हम पर ये पहले बिल में छुप जाते है।
ममता दीदी की ममता भी घुसपैठियों पर बरसती है, अपने देश की जनता अपने हक़ को तरसती है। लालू के आलुओं ने हमेशा चुप्पी साधी है, जब जब बंगला देश पाकिस्तान में हमारी हुई बर्बादी है।
केजरी की क्या कहे अब मोहम्मद केजीरिद्दीन बनना बाक़ी है, मंदिरों को नहीं देता अनुदान पर वहाँ ख़ैरातों की झांकी है। टैक्स भरे कोई और पलता कोई और है, सनातनियों के खून में अब नहीं रहा कोई जोर है।
तुमरी हरकत देख के राम ने भी तुम्हारा छोड़ा हाथ है, बजरंगबली भी जाएँगे और कृष्ण भी नहीं रहेंगे साथ है। कब जागोगे जब तुम अपने नक़्शे पर तुम शरणार्थी बन जाओगे, अगर आज तुम परदेश में अपनों के काम ना आओगे।
नेता तो अपने देश में अपनी रोटी सेकते है, जब ज़रूरत होती है उनकी, सिर्फ़ जुमले फेकते है ।
हम है परतंत्र नेता बन गये है आका हमारे, लाना होगा अपने में से किसी को जो काम सवारे। जो करे धर्म की रक्षा और देश निर्माण हमारा, तभी होगा असली स्वतंत्रता दिवस हमारा ।